श्री महालक्ष्मी पूजन व दीपावली का महापर्व कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष की अमावस्या में प्रदोष
काल, स्थिर लग्न समय में मनाया जाता है. धन की देवी श्री महा लक्ष्मी जी का आशिर्वाद
पाने के लिये इस दिन लक्ष्मी पूजन करना विशेष रुप से शुभ रहता है.
वर्ष 2012 में दिपावली, 13 नवम्बर, मंगलवार के दिन की रहेगी. इस दिन चित्रा नक्षत्र, परन्तु
प्रदोषकाल के बाद स्वाती नक्षत्र का काल रहेगा, इस दिन प्रीति योग तथा चन्दमा तुला राशि
में संचार करेगा. दीपावली में अमावस्या तिथि, प्रदोष काल, शुभ लग्न व चौघाडिया मुहूर्त विशेष
महत्व रखते है. बुधवार की दिपावली व्यापारियों, क्रय-विक्रय करने वालों के लिये विशेष रुप से
शुभ मानी जाती है.
1. प्रदोष काल मुहूर्त कब
1. When comes Pradosh Kaal Muhurta
13 नवम्बर 2012, मंगलवार के दिन दिल्ली तथा आसपास के इलाकों में सूर्यास्त 17:26 पर होगा.
इस अवधि से लेकर 02 घण्टे 24 मिनट तक प्रदोष काल रहेगा. इसे प्रदोष काल का समय कहा
जाता है. प्रदोष काल समय को दिपावली पूजन के लिये शुभ मुहूर्त के रुप में प्रयोग किया जाता है.
प्रदोष काल में भी स्थिर लग्न समय सबसे उतम रहता है. इस दिन प्रदोष काल व स्थिर लग्न दोनों
17:33 से लेकर 19:28 का समय रहेगा. इसके बाद 19:02 से 20:36 तक शुभ चौघडिया भी रहने से
मुहुर्त की शुभता में वृ्द्धि हो रही है.
प्रदोष काल का प्रयोग कैसे करें
How to Perform the Pradosh Kaal Activity
प्रदोष काल में मंदिर में दीपदान, रंगोली और पूजा से जुडी अन्य तैयारी इस समय पर कर लेनी
चाहिए तथा मिठाई वितरण का कार्य भी इसी समय पर संपन्न करना शुभ माना जाता है.
इसके अतिरिक्त द्वार पर स्वास्तिक और शुभ लाभ लिखने का कार्य इस मुहूर्त समय पर किया जा सकता है. इसके अतिरिक्त इस समय पर अपने मित्रों व परिवार के बडे सदस्यों को उपहार देकर आशिर्वाद लेना व्यक्ति के जीवन की शुभता में वृ्द्धि करता है. मुहूर्त समय में धर्मस्थलो पर दानादि करना कल्याणकारी होगा.
2. निशिथ काल
2. Nishith Kaal
13 नवम्बर, मंगलवार के दिन निशिथ काल लगभग
20:10 से 22: 52 तक रहेगा. स्थानीय प्रदेश के
अनुसार इस समय में कुछ मिनट का अन्तर हो
सकता है. निशिथ काल में लाभ की चौघडिया भी रहेगी, ऎसे में व्यापारियों वर्ग
के लिये लक्ष्मी पूजन के लिये इस समय की
विशेष शुभता रहेगी.
दिपावली पूजन में निशिथ काल का प्रयोग कैसे करें
How to perform TXT Nishith Kaal in Deepavali Puja
धन लक्ष्मी का आहवाहन एवं पूजन, गल्ले की पूजा तथा हवन इत्यादि कार्य सम्पूर्ण कर लेना
चाहिए. इसके अतिरिक्त समय का प्रयोग श्री महालक्ष्मी पूजन, महाकाली पूजन, लेखनी, कुबेर पूजन,
अन्य मंन्त्रों का जपानुष्ठान करना चाहिए.
3. महानिशीथ काल
3. Maha Nishith Kaal
धन लक्ष्मी का आहवाहन एवं पूजन, गल्ले की पूजा तथा हवन इत्यादि कार्य सम्पूर्ण कर लेना
चाहिए. इसके अतिरिक्त समय का प्रयोग श्री महालक्ष्मी पूजन, महाकाली पूजन, लेखनी, कुबेर पूजन,
अन्य मंन्त्रों का जपानुष्ठान करना चाहिए.
13 नवम्बर, मंगलवार 2012 के रात्रि में 22:52 से लेकर अगले दिन प्राप्त: 25:34 मिनट तक महानिशीथ काल रहेगा. महानिशीथ काल में कर्क लग्न भी हों, तो विशेष शुभ माना जाता है. महानिशीथ काल व कर्क लग्न एक साथ होने के कारण यह समय अधिक शुभ हो गया है. जो जन शास्त्रों के अनुसार दिपावली पूजन करना चाहते हो, उन्हें इस समयावधि को पूजा के लिये प्रयोग करना चाहिए.
महानिशीथ काल का दिपावली पूजन में प्रयोग कैसे करें
How to Include Maha Nishith Kaal in Deepavali Puja
महानिशीथकाल में मुख्यतः तांत्रिक
कार्य, ज्योतिषविद, वेद् आरम्भ, कर्मकाण्ड, अघोरी,यंत्र-मंत्र-तंत्र कार्य
व विभिन्न शक्तियों का पूजन करते हैं
एवं शक्तियों का आवाहन करना शुभ रहता है. अवधि में दीपावली
पूजन के पश्चात गृह में एक चौमुखा
दीपक रात भर जलता रहना चाहिए. यह दीपक लक्ष्मी एवं सौभाग्य
में वृध्दि का प्रतीक माना जाता है.
लक्ष्मी पूजा विधि
निम्न लिखित मंत्र का 72 दिनों में सवा लाख जप करें एवं इसका सवा हजार हवन करें । इस क्रिया के दौरान धूप दीपक नैवेद्य का उपयोग करें ।
ओम अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोस्ति वा।
य: स्मेरत पुण्डरीकांक्ष स बाह्यभ्यन्तर: शुचि: ॥
चौकी के दायीं ओर घी का दीपक प्रज्जवलित करें। इसके पश्चात दाहिने हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर निम्न मंत्रों से स्वस्तिवाचन करें -
ओम स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धाश्रवा: स्वस्ति न: पूषा विश्ववेदा:। स्वस्ति नस्ताक्ष्र्यो अरिष्टनेमि:स्वस्तिनो बृहस्पतिर्दधातु॥
पय:
पृथिव्यांपय ओषधीयु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धा:। पयस्वती: प्रदिश: सन्तु
मह्यम। विष्णो रामटमसि विष्णो: श्नप्त्रेस्थो विष्णो: स्यूरिस
विष्णोधुरर्वासि:। वैष्णवमसि विष्णवे त्वा॥
अग्निर्देवताव्वातोदेवतासूय्र्योदेवता चन्द्रमा देवताव्वसवो देवता
रुद्रोदेवता बृहस्पति: देवतेन्द्रोदेवताव्वरुणादेवता:॥ ओम शांति: शांति:
सुशांतिभर्वतु। सर्वोरिष्ठ-शांतिर्भवतु॥
विभिन्न देवताओं के स्मरण के पश्चात निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करें-
विनायकम गुरुं भानुं ब्रहाविष्णुमहेश्वरान।
सरस्वतीय प्रणाम्यादौ सर्वकार्यार्थ सिद्धर्य॥
हाथ में लिए हुए अक्षत और पुष्प को चौकी पर समर्पित कर दें।
एक सुपारी लेकर उस पर मौली लपेटकर चौकी पर थोड़े से चावल रखकर सुपारी को उस पर रख दें। तदुपरांत भगवान गणेश का आह्वान करें-
आहृवान के पश्चात निम्नलिखित मंत्र की सहायता से गणेशजी की प्रतिष्ठा करें और उन्हें आसन दें-
अस्यै प्राणा: प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा: क्षरन्तु च।
अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन॥
गजाननं सुप्रतिष्ठिते वरदे भवेताम ॥
प्रतिष्ठापूर्वककम आसनार्थे अक्षतान समपर्यामि गजाननाभ्यां नम:।
पुन: अक्षत लेकर गणेशजी के दाहिनी ओर माता अम्बिका का आवाहन करें
ओम अम्बे अम्बिकेम्बालिके न मां नयति कश्चन।
ससस्त्यश्वक: सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम ।
हेमाद्रितनयां देवीं वरदां शंकरप्रियाम।
लम्बोदरस्य जननीं गौरीमावाहयाम्यहम॥
ओम भूभुर्व: स्व: गौर्य नम:, गौरीमावाहयमि, स्थापयामि, पूजयामि च ।
अक्षत चौकी पर छोड़ दें। अब पुन: अक्षत लेकर माता अम्बिका की प्रतिष्ठा करें-
अस्यै देवत्वमचौर्य मामहेति च कश्चन॥
आम्बिके सुप्रतिष्ठिते भवेताम।
प्रतिष्ठापूर्वकम आसनाथे अक्षतान समर्पयामि गणेशम्बिका नम: ।
ऐसा कहते हुए आसन के समक्ष समर्पित करें।
महाल्क्ष्मी पूजन
उक्त
समस्त प्रक्रिया के पश्चात प्रधान पूजा में भगवती महालक्ष्मी का पूजन करना
चाहिए। पूजन से पूर्व नवीन चित्र और श्रीयंत्र तथा द्रव्यलक्ष्मी स्वर्ण
अथवा चांदी के सिक्के आदि की निम्नलिखित मंत्र से अक्षत छोड़कर प्रतिष्ठा
कर लेनी चाहिए।
अस्यै प्राण: प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा: क्षरन्तु च ।
अस्यै देवत्मर्चायै मामहेति च कश्चन॥
ध्यान: तदुपरान्त हाथ में लाल कमल पुष्प लेकर निम्न मंत्र देवी लक्ष्मी का ध्यान करें।
आवाहन: हाथ में पुष्प लेकर देवी का आवाहन करे-
सर्वलोकस्य जननीं सर्वसौख्यप्रदासिनौम।
सर्वदेवमदयीमीशां देवीवाहयाम्हम॥
अब पुष्प समर्पित करें।
तप्मकाऋनर्वाभं मुक्तामणिविराजितम।
अमलं कमलं दिव्योमासन प्रतिगृहृताम॥
आसन के लिए कमल पुष्प अर्पित करें-
गड्डनदितीर्थसम्भूतं गन्धपुष्पादिभिर्युतम।
पाद्यं ददाम्यी देवि गृहाणाशु नमोस्तुति ते॥
अघ्र्य: निम्न मंत्र से देवी को अघ्र्य दें अष्टगंध से मिश्रित जल से-
अष्टगन्धसमायुक्तं स्वर्णपात्रप्रपूरितम।
अघ्र्यं गृहाण महतं महालक्ष्मी नमोस्तुते॥
ओम महालक्ष्म्यै नम:। अघ्य समर्पयामि॥
स्नान: निम्न मंत्र से देवी को स्नान कराएं-
मन्दाकिन्या: समानीतैर्हेमाम्भोरुहासितै:।
स्नानं कुरूष्व देवेशि सलिलैश्च सुगन्धिभि:॥
ओम महालक्ष्म्यै नम:। स्नानं समर्पयामि॥
पचांमृतस्नान: निम्न मंत्र से देवी को पंचामृत घी, शहद, दुग्ध, शर्करा, दही स्नान कराए:
पयो दधि घृतं चैव मधुशर्करयान्वितम।
पत्रामृतं मयानीतं स्नानार्थ प्रतिगुहृताम॥
ओम महालक्ष्म्यै नम:। पंचामृत स्नानं समर्पयामि॥
शुद्धोदक स्नान: निम्न मंत्र से देवी को शुद्धोदक स्नान कराएं:
मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम।
तदिदं कल्पित तुभ्यं स्नानार्थ प्रतिगृहृताम॥
ओम महालक्ष्त्यै नम:। शुद्धोदक स्नानं समर्पयातिम॥
वस्त्र: निम्न मंत्र से देवी को वस्त्र अर्पित करें:
दिव्याम्बरं नूतनं हि क्षौमं त्वतिमनोहरम।
दीयमानं मया देवि गृहाण जगदम्बिके॥
ओम महालक्ष्मै नम:। वस्त्रं समर्पयामि॥
आभूषण: निम्न मंत्र से देवी को आभूषण अर्पित करें:
रत्नकड्कणवैदूर्यमुक्ताहारादिकदत्तानि च।
सुप्रसन्नेन मनसा दत्ताति स्वीकुरुष्व भो:॥
ओम महालक्ष्म्यै नम:। आभूषणें समर्पयामि॥
गंध: निम्न मंत्र से देवी को गंध रोली-चंदन अर्पित करें:
श्रीखण्डं चंदन दिव्यं गन्धाढयं सुमनोहरम।
विलेपनं सुरक्षेष्ठ चदंन प्रमितगृहृताम॥
ओम महालक्ष्म्यै नम:। गन्धं समर्पयामि॥
सिंदूर: निम्न मंत्र से देवी को सिंदूर अर्पित करें:
सिन्दूरं रक्तवर्ण व सिन्दूरतिलप्रिये।
भक्त्या दत्तं मया देवि सिन्दूरं प्रतिगृहृताम॥
ओम महालक्ष्म्यै नम:। सिन्दूरं समर्पयामि॥
कुमकुम: निम्न मंत्र से देवी को कुमकुम अर्पित करें:
तैलानि च सुगन्धीनि द्रव्ययाणि विविधानि च।
मया दत्तानि लेपाथ गृहाण परमेश्वरि॥
ओम महालक्ष्म्यै नम:। कुंकुमं समर्पयामि॥
अक्षत: निम्न मंत्र से देवी को अक्षत चावल अर्पित करे:
अक्षताश्च सुरक्षेष्ठे कुड्कमाक्ता: सुशोभिता:।
मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरि॥
ओम महालक्ष्म्यै नम:। अक्षतम समर्पयामि॥
अक्षत के स्थान पर अपनी परम्परा के अनुरूप हल्दी की गांठ या गुड़ भी अर्पित किया जाता है।
पुष्प एवं पुष्पमाला: निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी को पुष्प एवं पुष्पमाला अर्पित करे-
माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो।
मयानीतानि पुष्पाणि पूजाथ प्रतिगृहृताम।
ओम महालक्ष्म्यै नम:। पुष्पं पुष्पमालाम च समर्पयामि॥
ओम महालक्ष्म्यै नम:। धूपमाप्रापघामि॥
दीप: निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी को दीप दिखाएं:
साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वहृना योजित मया।
दीपं गृहाण देवेशि त्रैलोक्यतिमिरापहम॥
ओम महालक्ष्म्यै नम:। दीपम दर्शयामि॥
नैवेद्य:
किसी कटोरी में पान के पत्ते के ऊपर नैवेद्य प्रसाद रखें तथा उस पर लौंग
का जोड़ा अथवा इलायची रखें। तदुपरांत निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते
हुए देवी को उक्त समस्त सामग्री अर्पित करें-
शर्कराखण्डखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च।
आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवेद्यं प्रतिगृहृाताम॥
उत्तरापानाथ हस्तप्रक्षालनाथ मुख्यप्रक्षलानार्थ च जलं समर्पयामि।
ऐसा कहते हुए जल अर्पित करें।
ऋतुफल और दक्षिणा: अग्रलिखित मंत्र का उच्चारण करते हुए देवी को ऋतुफल और दक्षिणा अर्पित करें:
इदं फलं मया देवि स्थापित पुरतस्तव:।
तेन से सफलावप्तिर्भवेज्जनमनि जन्मनि॥
हिरणगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसों:।
अनन्तपुण्यफलमत: शांतिं प्रयच्छ मे॥
ओम महालक्ष्म्यै नम:। ऋतु फलं दक्षिणाम च समर्पयामि:॥
Lakshmi Mantra(धन लाभ व समृद्धि हेतु महालक्ष्मी मंत्र)
निम्न लिखित मंत्र का 72 दिनों में सवा लाख जप करें एवं इसका सवा हजार हवन करें । इस क्रिया के दौरान धूप दीपक नैवेद्य का उपयोग करें ।
ll ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं त्रिभुवन महालक्ष्म्यै अस्मांक दारिद्र्य नाशय प्रचुर धन देहि देहि क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ ll
आरती, पुष्पाज्जलि और प्रदक्षिणा
निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए आरती, पुष्पाज्जलि और प्रदक्षिणा करें:
कदलीगर्भसम्भूतं कर्पूरं त प्रदीपितम।
आरार्तिकमहं कुर्वे पश्य मे वरदो भव॥
नानासुगन्धिपुष्पाणि यथाकालोभ्दवानि च।
पुष्पाज्जलिर्मया दत्ता गृहाण परमेश्वरि॥
यानि काानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिण पदे पदे।
ओम महालक्ष्म्यै नम:। प्रार्थनापूर्वक नमस्कारान समर्पयामि॥
समर्पण
निम्नलिखित का उच्चारण करते हुए महालक्ष्मी के समक्ष पूजन कर्म को समर्पित करें और इस निमित्त जल अर्पित करें-
कृतेनानने पूजनेन भगवती महालक्ष्मीदेवी प्रीयताम न मम॥
उक्त
प्रक्रिया के पश्चात देवी के समक्ष दण्डवत प्रणाम करें तथा अनजाने में
हुई त्रुटियों के लिए क्षमा मांगते हुए, देवी से सुख-सम़ृद्धि , आरोग्य
तथा वैभव की कामना करें।
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