Wednesday 24 October 2012

तान्त्रोक्त गोरखक्षनाथ प्रत्यक्षीकरण साधना॰


श्रीमदभागवत महापुराण मे नवनाथ जी की वर्णन मिलती है,ऋषभदेवजी के १०० पुत्र थे और १०० मे से ९ पुत्र ज्ञानमार्गी सन्यासी बन गये॰ इसी पुराण मे एकादश स्कन्ध मे इस बात की वर्णन बताई हुयी है॰
निमिराजा जी को ऋषियोने धर्म तत्व समजाई थी,वही ऋषि फिर से कलयुग मे जन्मे और उन्होने नाथसप्रदाय की स्थापना की और दुनिया की कल्याण की लिये ‘’योगसिद्धि’’ और भक्ति मार्ग समजाइ॰
कली ने ‘मच्छीन्द्र’, हरी ने ‘गोरक्ष’, अंतरिश ने ‘जालिन्दर’, प्रबुद्ध ने ‘कानिफ’, पिप्पलायन ने ‘चर्पटी’, अर्वीहोत्रा ने ‘वटसिद्ध नागनाथ’, द्रुमील ने ‘भर्तरी’,चमस ने ‘रेवण’ और करभजन ने ‘गहिनी’ इस प्रकार से इन्होंने जन्म ली है॰
आदिनाथ शिवजी और दत्तात्रेय जी की आज्ञा से,दीक्षा से नाथसप्रदाय की जन्म हुयी है॰
                                       

                                                           नाथपंथिय दीक्षा विधि


         नाथसप्रदाय मे दीक्षा ग्रहण करने की लिये पौष,माघ,फाल्गुन व चैत्र माह और पूर्णिमा शुभ मानी जाती है॰दीक्षा से पूर्व गुरु अपने शिष्य की अनेक प्रकार से परीक्षा तो लेते ही है॰ दीक्षा की समय सिहनाद सुनाई जाती है और ‘अलख निरंजन’ शब्द की महत्व समजाइ जाती है॰ दीक्षा की पद्धतीनुसार ‘दर्शनीनाथ व अवघडनाथ’ येसी दो प्रकार की सप्रदाय है॰ जीनके कान मे कुंडल होती है वह दर्शनीनाथ के नाम से जाने जाती है। साधना की माध्यम से भी आप नवनाथ सप्रदाय की अवघड दीक्षा की प्राप्ति कर सकते है॰
अब येसी विधि हमारे पास हो और हम दीक्षा प्राप्ति ना कर सके यह बात तो उचित ही नहीं है,इसीलिये आप भी अवघड दीक्षा की प्राप्ति कर सकते है ॰ अब यह दीक्षा आप प्राप्त करके साबर मंत्रो मे सफलता और पूर्ण गोरक्ष कृपा भी प्राप्त कीजिये॰

साधना सामग्री- 
             
           काले कंबल की आसन,रुद्राक्ष माला,चैतन्य नवनाथ चित्र,

विधि-

            उत्तर या पूर्व दिशा की और मुख करके बैठीये,सामने किसी बाजोट पर पीली वस्त्र बिछानी है और इसपे चैतन्य सदगुरुजी एवं नवनाथ जी की चित्र की स्थापना कीजिये॰साथ मे कलश स्थापना भी करनी है,कलश स्थापना की विधि जैसी भी आपके पास हो उसी प्रकार से कीजिये॰ दीपक पूजन करके दीप प्रज्वलित करनी है और सुगंधित धूप बत्ती जलानी है॰ गुरुपूजन कीजिये और साथ मे गुरुमंत्र की ९ माला और ॐ नम: शिवाय मंत्र की १ माला करनी है ॰ सदगुरुजी से साधना सफलता की और दीक्षा प्राप्ति की लिये प्रार्थना कीजिये॰ ‘’श्रीनाथ जी की जय’’ बोलते हुये ताली बजानी है॰अब नवानाथ जी को प्रणाम करते हुये ९ बार नाथ मंत्र बोलनी है साथ मे ही अपनी मनोकामना बोलनी है की ‘’मै अमुक गुरुजी का शिष्य/शिष्या अवघडनाथ दीक्षा प्राप्ति एवं दर्शन की अभिलाषा हेतु आपसे प्रार्थना करता/करती हु,कृपया आप इस मनोकामना को पूर्ण कर दीजिये’’,और पुष्प माला चढ़ा दीजिये यह क्रिया ७ दिन नित्य करनी है॰




 गोरक्ष जालंदर चर्पटाच्श्र अड़बंग कानिफ मच्छीद्राद्या:। चौरंगीरेवणकभात्रीसंज्ञा भूम्यां बभूवर्ननाथसिद्धा:। । 



अब हमे २२/११/२०१२ से साधना २८/११/२०१२ तक नीत्य २१ माला मंत्र जाप करते हुये प्रारम्भ करनी है॰ समय ब्रम्हमुहूर्त की होनी चाहिये.............. 

 

तान्त्रोक्त गोरखक्षनाथ प्रत्यक्षीकरण मंत्र-

                                   

 

                                   । । ॐ ह्रीं श्रीं गों हुं फट स्वाहा । ।                                     

                       । । Om hreem shreem gom hum phat swaha । । 

 

 


 साधना समाप्ती मे आखरी दिवस पर गोरखनाथ जी की दर्शन होती है और साथ मे ही उनसे सूष्म-पात,शक्तिपात या मंत्र दीक्षा की माध्यम से दीक्षा की प्राप्ति होती है॰ येसा अगर साधक के साथ संभव नहीं हुआ तो चिंता की कोई बात नहीं यह क्रिया उसके साथ स्वप्न की माध्यम से हो ही जाती है॰ माला को आप सदैव संभाल कर रखिये यह माला आपको साबर साधना ओ मे शीघ्र सफलता प्रदान करती है यह इस साधना की विशेषता है॰ 


अलख निरंजन,अलख निरंजन,अलख निरंजन,अलख निरंजन,अलख निरंजन...........






जय जय निखिलेश्वर...................................................


Sunday 14 October 2012

कामकाली साधना



सारी ब्रम्हान्ड मे ज्यो कुछ देखे वह माँ आपकी ही माया है ।
पही हो माँ ज्यो मेरी हो और सिर्फ मेरी ही माँ हो । ।

कामकाली जी की स्तुति नहीं कर सकती हु क्यूकी माँ की गुणगान की लिए शब्द ही छोटे पड रहे है,फिर भी एक बार कोशिश करके देखती हु...................
जिस समय दिन-रात,पृथ्वी-आकाश,हवा-पानी,विवेक-बुद्धि,हृदय की स्पंदने कुछ भी न था उस समय आदिशक्ति पराम्बा जी की रूप मे सिर्फ आप और सिर्फ आप ही थी। आप ने मेरी प्यारी माँ ब्रम्हा,विष्णु,महेश,और इस त्रिभुवन को भी जन्म दिया है। हे माँ आप चौदह भुवनो की अधिष्ट्राती देवी हो,सभी देवी देवताये आपकी साधना करके ही सिद्ध और चैतन्य बने हुये है और आपकी ही कृपा से सभी देवी-देवताओको सिद्धीया प्राप्त हुयी है।
‘’कामकला मे काम बीज क्लीं है,क्लींकार सदाशिव काम है, आकाश तत्व है, पृथ्वी तत्व है, पाताल से लेकर आकाश तक सारी आपकी ही कला है। जब तक माँ आपकी शक्ति सभी देवी देवताओ के साथ कार्य कर रही है तब तक ही इन सबकी वास्तविकता है, इसी कारण रात्री की मध्यकाल मे।महानिशा की शुभ समय मे आपकी उपासना सर्वश्रेष्ठ है,
नवरात्रि नजदीक आ रही है इसीलिये मै ज्यादा कुछ नहीं लिख पाउगी परंतु नवरात्रि की बाद और कुछ लिखना चाहुगी।

साधना विधि :-

सर्वप्रथम गुरुपूजन कीजिये और गुरुमंत्र की 5 माला जाप कीजिये। फिर भैरव मंत्र की 1 माला जाप करनी है ।

यह मंत्र माँ की सेवा मे ज्यो भैरव जी है,उनकी है।

                      ॥ फ्रें भैरवाय फ्रें फट ॥


विनियोग:-

        ॐ अस्य श्री वितहव्य ऋषी जगती छन्द कामकालीदेवता नाराच द्रां बीजं कुन्त क्रीं शक्ति सृष्टि किलकं श्रीकामकालीका सिद्धि प्रीत्यर्थे जपे विनियोग:।

ध्यान:-

ध्यानमस्या: प्रवक्ष्यामी कुरू चीत्तयेकतानाम ।
उद्ददघनाघना श्लीष्यज्जवाकुसुमसन्नीभाम । ।

करन्यास:-

क्लीं का अंगुष्टाभ्यां नम:।
क्रीं म तर्जनिभ्यां नम:।
हुं क मध्यमाभ्यां नम:।
क्रों ला अनामिकाभ्यां नम:।
स्फ्रें का कनीष्ठीकाभ्यां नम:।
काम कलाकाली ली करतल करपृष्ठाभ्यां नम:।

मंत्र :-

             । ।  क्लीं स्फ्रें स्फ्रें क्लीं फट । ।



साधना मे आप काले वस्त्र ,काला आसन ,काली हकीक या रुद्राक्ष की माला,महाकाली जी का चित्र एवं कोई भी शिवलिंग । दिशा पूर्व या दक्षिण । समय 11:36 से 01:36 तक।संकल्प लेना आवश्यक है। इस साधना मे 11 मालाये नीत्य 9 दिन तक करनी है .

साधना समाप्ती की बाद रोज शिव जी का अभिषेक 108 मंत्र बोलते हुये कीजिये

                    ॥ क्लीं शिवाय क्लीं फट ॥


अब प्रसाद की स्वरूप मे भोग लगा दीजिये। और कोई एक सफ़ेद पुष्प चढाते हुये फिर से एक बार अपनी मनोकामना बोल दीजिये।
                 ॐ शांति शांति बोलते हुये अब अपनी ऊपर जल छिडके।

यह पूर्ण क्रिया 9 दिन तक करनी है तभी जाकर साधना पूर्ण मनी जायेगी,और आपकी इच्छाये भी पूर्ण हो जायेगी.........


जय निखिलेश्वर.................

Saturday 13 October 2012

द्वादश काली साधन


यह सारी की सारी ब्रम्हान्ड मात्र एक अपार सक्रिय चेतना की प्रवाह है अर्थात इस अपार शक्ति की द्वादश काली की प्रतिक रूप मे तीस अंशो मे तथा इन्ही तीस अंशो को माह की रूप मे दर्शायी गयी है. इन्ही तीस अंशो की प्रथम प्रतिप्रदा से लेकर पूर्णमासी एवं फिर पूर्णमासी के बाद प्रतिप्रदा से अमावस्या तक तिथियो की फलस्वरूप तीस अंश की प्रत्येक अंश मे विभक्त की कियी गयी है। इस प्रकार हमारी पृथ्वी की यही तीस अंश मास की फलस्वरूप अंश रेखा कहलाती है। यही द्वादश काली प्रथम सृष्टि + स्थिति एवं संहार करती रहेती है।
अर्थात
प्रथम स्थिति मे  (स्थिति+सृष्टि) ,(सृष्टि+स्थिति) एवं (सृष्टि+संहार)…………….
द्वितीय स्थिति मे (सृष्टि+सृष्टि) ,(स्थिति+स्थिति) एवं (स्थिति+संहार)…………
तृतीय स्थिति मे  (संहार+संहार) ,(संहार+सृष्टि) एवं (संहार+स्थिती) की रूप मे कालचक्र का बनाना एवं बिगड़ना यह क्रिया निरंतर चलती रहेती ही है। इस प्रकार से ब्रम्हान्ड व्यापक शक्ति की स्वयंभू स्वरूप है और इसी स्वरूप की चारों ओर आठ भैरव रूपी शक्तीयो की निवास है।
भैरव अर्थात () से भरण(सृष्टि) ,() से रमण(स्थिति) तथा () से वरण(संहार)। यही अष्ट भैरव अष्ट दिशाओ को भी दर्शाते है। इन्हि की बीच मे पूर्ण राज भैरव है,क्योकि इसी पूर्ण राज भैरव अर्थात सूर्य की पृथ्वी (माता) भी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की परिक्रमा करती रहेती है। यहा पूर्ण राज भैरवजी पर मै ज्यादा नहीं लिखना चाहती हु ,परंतु समय आने पर इनकी साधना अवश्य दुगी।
साधना:- यह बात तो आपको समज़ मे आ ही गयी होगी की द्वादश काली साधना कितनी महत्वपूर्ण साधना है । इस साधना से बहोत सारी लाभों की मान्यताये कई तंत्र शास्त्र मे बताई गयी है।
ज्यो साधक/साधिका अपनी पूर्ण जीवन काल मे द्वादश काली साधना सम्पन्न करते है वह साधक ब्रम्हान्ड भेदन क्रिया के अधिकारी होते है और सारे दृष्ट ग्रह उनके सामने हाथ बांधे हुये खड़े होते ही है..................
सामग्री:- महाकाली चित्र,काली हकीक माला,एक सुपारी,काली धोती,काला आसन,एक हरे रंग की नींबू ।


विनियोग :-

    ॐ अस्य श्री द्वादश काली मंत्रस्य भैरव ऋषी:,उष्णीक छंन्द:,कालिका देवता , क्रीं बीजम ,हुं शक्ती: ,क्रीं किलकं मम अभीष्ट सिध्द्यर्थे जपे विनियोग:।

देवी की स्तुति कीजिये परंतु अपनी भावना की आधार पर,ज्यो भी आपकी दिल से निकले वह स्तुति एवं ध्यान कीजिये ।

अब भगवान महाकालभैरव जी को कोई एक पुष्प मंत्र बोलते हुये समर्पित कीजिये।

ॐ हूं स्फ़्रौं यं रं लं वं क्रौं महकालभैरव सर्व विघ्नन्नाशय नाशाय ह्रीं श्रीं फट् स्वाहा   



अब निम्न मंत्र की 18 मालाये नवरात्रि की प्रतिप्रदा से अष्टमी तक करनी है और नवमी को किसी अग्नि पात्र मे अग्नि प्रज्वलित कीजिये साथ मे काले तिल और काली मिर्च की 151 आहुती दीजिये।यह विधान सम्पन्न करते ही आपकी साधना पूर्ण मनी जायेगी।
                       मंत्र :

      । । ॐ क्रीं हुं क्रीं द्वादश कालीके क्रीं हुं क्रीं फट् । ।



निम्न मंत्र बोलते हुये देवी को प्रणाम कीजिये और कोई भी लाल रंग की पुष्प समर्पित कीजिये।

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हुं ह्रीं श्री सर्वार्थदायक ब्रम्हान्ड स्वामिनी नमस्ते नमस्ते स्वाहा  

अब देवी को नींबू की बली चढानी है,इसीलिए निम्न मंत्र बोलते हुये ज़ोर से नींबू पे प्रहार कीजिये और देवी की सामने उसे फोड़ दीजिये।

क्रीं ह्रीं क्रीं फट बलीं दद्यात स्वाहा


साधना काल मे शुद्धता की पालन कीजिये,और नवरात्रि की पावन पर्व इस साधना की लिये यह तीव्रतम समय है क्यूकी यह नवरात्रि मंगलवार से प्रारम्भ हो रही है। और यह साधना समाप्त होते ही रात्री मे माँ स्वप्न मे दर्शन देती है और हमसे कोई भी इच्छा प्रग करने की आज्ञा देती है,हम माँ से ज्यो भी वरदान मांगेंगे वह माँ तथास्तु कहेते हुये प्रदान कर देती ही है।अब जब माँ ही सब कुछ देने की लिये तयार है तो मै साधना की बारे मे और क्या लाभ लिख सकती हु ।


जय निखिलेश्वर...................................