सारी ब्रम्हान्ड मे ज्यो कुछ देखे वह माँ आपकी ही माया है ।
आपही हो माँ ज्यो मेरी हो और
सिर्फ मेरी ही माँ हो । ।
कामकाली जी की स्तुति
नहीं कर सकती हु क्यूकी माँ की गुणगान की लिए शब्द ही छोटे पड रहे है,फिर भी एक बार कोशिश करके देखती
हु...................
जिस समय दिन-रात,पृथ्वी-आकाश,हवा-पानी,विवेक-बुद्धि,हृदय की स्पंदने कुछ भी न था उस
समय आदिशक्ति पराम्बा जी की रूप मे सिर्फ आप और सिर्फ आप ही थी। आप ने मेरी प्यारी
माँ ब्रम्हा,विष्णु,महेश,और इस त्रिभुवन को भी जन्म दिया
है। हे माँ आप चौदह भुवनो की अधिष्ट्राती देवी हो,सभी देवी देवताये आपकी साधना करके ही सिद्ध और चैतन्य बने
हुये है और आपकी ही कृपा से सभी देवी-देवताओको सिद्धीया प्राप्त हुयी है।
‘’कामकला
मे काम बीज ‘क्लीं’ है,क्लींकार सदाशिव काम है, ’क’ आकाश तत्व है, ‘ल’ पृथ्वी तत्व है, पाताल से लेकर आकाश तक सारी आपकी ही कला है। जब तक माँ आपकी शक्ति सभी देवी देवताओ के साथ
कार्य कर रही है तब तक ही इन सबकी वास्तविकता है, इसी कारण रात्री की मध्यकाल मे।महानिशा की शुभ समय मे आपकी उपासना सर्वश्रेष्ठ है,
नवरात्रि नजदीक आ रही है इसीलिये मै ज्यादा कुछ नहीं लिख पाउगी परंतु नवरात्रि की बाद और कुछ
लिखना चाहुगी।
साधना विधि :-
सर्वप्रथम गुरुपूजन कीजिये और गुरुमंत्र की 5 माला जाप कीजिये। फिर भैरव मंत्र
की 1 माला जाप करनी है ।
यह मंत्र माँ की सेवा मे ज्यो भैरव जी है,उनकी है।
॥ फ्रें भैरवाय फ्रें फट ॥
विनियोग:-
ॐ अस्य श्री वितहव्य ऋषी जगती छन्द
कामकालीदेवता नाराच द्रां बीजं कुन्त क्रीं शक्ति सृष्टि किलकं श्रीकामकालीका सिद्धि प्रीत्यर्थे
जपे विनियोग:।
ध्यान:-
ध्यानमस्या: प्रवक्ष्यामी कुरू चीत्तयेकतानाम ।
उद्ददघनाघना श्लीष्यज्जवाकुसुमसन्नीभाम । ।
करन्यास:-
क्लीं का अंगुष्टाभ्यां नम:।
क्रीं म तर्जनिभ्यां नम:।
हुं क मध्यमाभ्यां नम:।
क्रों ला अनामिकाभ्यां नम:।
स्फ्रें का कनीष्ठीकाभ्यां
नम:।
काम कलाकाली ली करतल करपृष्ठाभ्यां नम:।
मंत्र :-
। । क्लीं स्फ्रें स्फ्रें क्लीं फट । ।
साधना मे आप काले वस्त्र ,काला आसन ,काली हकीक या रुद्राक्ष की माला,महाकाली जी का चित्र एवं कोई भी
शिवलिंग । दिशा पूर्व या दक्षिण । समय 11:36 से 01:36 तक।संकल्प लेना आवश्यक है। इस साधना मे 11 मालाये नीत्य
9 दिन तक करनी है .
साधना समाप्ती की बाद रोज शिव जी का अभिषेक
108 मंत्र बोलते हुये कीजिये
॥ क्लीं शिवाय क्लीं फट ॥
अब प्रसाद की स्वरूप मे भोग लगा दीजिये। और कोई एक सफ़ेद पुष्प चढाते
हुये फिर से एक बार अपनी मनोकामना बोल दीजिये।
ॐ शांति शांति बोलते हुये अब अपनी ऊपर जल छिडके।
यह पूर्ण क्रिया 9 दिन तक करनी है तभी जाकर साधना पूर्ण मनी जायेगी,और आपकी इच्छाये भी पूर्ण हो जायेगी.........
जय निखिलेश्वर.................
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